What Does Shodashi Mean?

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Celebrations like Lalita Jayanti underscore her significance, wherever rituals and offerings are created in her honor. These observances certainly are a testomony to her enduring allure as well as the profound effect she has on her devotees' lives.

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥९॥

The Shreechakra Yantra encourages the advantages of this Mantra. It isn't Obligatory to meditate in front of this Yantra, however, if you can buy and use it all through meditation, it is going to give amazing Positive aspects to you. 

Charitable acts for example donating foodstuff and clothes for the needy also are integral to your worship of Goddess Lalita, reflecting the compassionate facet of the divine.

सा नित्यं मामकीने हृदयसरसिजे वासमङ्गीकरोतु ॥१४॥

चतुराज्ञाकोशभूतां नौमि श्रीत्रिपुरामहम् ॥१२॥

यह शक्ति वास्तव में त्रिशक्ति स्वरूपा है। षोडशी त्रिपुर सुन्दरी साधना कितनी महान साधना है। इसके बारे में ‘वामकेश्वर तंत्र’ में लिखा है जो व्यक्ति यह साधना जिस मनोभाव से करता है, उसका वह मनोभाव पूर्ण होता है। काम की इच्छा रखने वाला व्यक्ति पूर्ण शक्ति प्राप्त करता है, धन की इच्छा रखने वाला पूर्ण धन प्राप्त करता है, विद्या की इच्छा रखने वाला विद्या प्राप्त करता है, यश की इच्छा रखने वाला यश प्राप्त करता है, पुत्र की इच्छा रखने वाला पुत्र प्राप्त करता है, कन्या श्रेष्ठ पति को प्राप्त करती है, इसकी साधना से मूर्ख भी ज्ञान प्राप्त करता है, हीन भी गति प्राप्त करता है।

Chanting the Mahavidya Shodashi Mantra produces a spiritual defend close to devotees, protecting them from negativity and harmful influences. This mantra functions like a supply of security, serving to men and women sustain a good ecosystem no cost from psychological and spiritual disturbances.

The Shodashi Mantra can be a 28 letter Mantra and therefore, it is amongst the easiest and best Mantras so that you can read more recite, try to remember and chant.

हस्ते पाश-गदादि-शस्त्र-निचयं दीप्तं वहन्तीभिः

श्रौतस्मार्तक्रियाणामविकलफलदा भालनेत्रस्य दाराः ।

वाह्याद्याभिरुपाश्रितं च दशभिर्मुद्राभिरुद्भासितम् ।

श्रीमद्-सद्-गुरु-पूज्य-पाद-करुणा-संवेद्य-तत्त्वात्मकं

बिभ्राणा वृन्दमम्बा विशदयतु मतिं मामकीनां महेशी ॥१२॥

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